खूब मनाओ नये वर्ष की
खुशियाँ तुम दिन-रात,
पर भूल न जाना नये वर्ष मे
खठ्ठी-मिठ्ठी सब बात,
गुज़र गई सब वो रातें
पंक्षी आ गये मचान,
नये वर्ष की नयी किरण मे
मंज़िल है कुछ पास,
नयी तरक्की वाले दिन
आ गये एक हजार,
देखो भईय्या अभी भी
खतरा टला नही है यार,
खूब मनाओ खुशियाँ
थाली ढ़ोल तैयार।
कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)