खुशियाँ - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

खूब मनाओ नये वर्ष की 
खुशियाँ तुम दिन-रात,
पर भूल न जाना नये वर्ष मे 
खठ्ठी-मिठ्ठी सब बात,
गुज़र गई सब वो रातें 
पंक्षी आ गये मचान,
नये वर्ष की नयी किरण मे 
मंज़िल है कुछ पास,
नयी तरक्की वाले दिन 
आ गये एक हजार,
देखो भईय्या अभी भी 
खतरा टला नही है यार,
खूब मनाओ खुशियाँ 
थाली ढ़ोल तैयार।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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