परवेज़ मुज़फ्फर - इंग्लैंड
जश्न-ए-आज़ादी - मुक्तक - परवेज़ मुज़फ्फर
मंगलवार, जनवरी 26, 2021
आकर वतन से दूर तरक्की की दाँव में
परदेश हम ने बाँध लिए अपने पाँव में।
रह कर अज़ीम शहरो में परवेज़ आज भी
दिल का कयाम है उसी छोटे से गाँव में।।
देश है चाँद, उस का नूर है हम
अपनी आज़ादी पे मसरूर है हम।
नाम पर उसके दिल धडकता है
यूँ तो हिन्दुस्तान से दूर है हम।।
मिट्टी भारत की चुमते है हम
इतने खुश है की झूमते है हम।
आँखों में नाचता है देश अपना
और यूके में घूमते है हम।।
भोले भाले है और जियाले है
डेरा ब्रिटानिया में डाले है।
नाज़ है हम को इस ताअल्लुक पर
हम भी हिन्दुस्तान वाले है।।
दूर भारत से है अजीब है हम
यानी खुशहाली से गरीब है हम।
खून में अपने रच गया है वतन
दूर रह कर बहुत करीब है हम।।
जिस डाल में मस्कन है उसे काट रहे है
अफ़सोस कि अपना ही लहु चाट रहे है।
कब समझेगे हम लोग की इस देश के दुश्मन
मज़हब की कतरनी से हमें छाट रहे है।।
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