चाहत - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"

दिलवर से दिल लगाना चाहता हूं।
प्रेम का दीपक जलाना चाहता हूं।

ताक़यामत करेंगे मोहब्बत उनसे,
मिलके ये उनको बताना चाहता हूं।

दिल में कई ख़्याल, सपने कई हैं,
सपनों का जहां बसाना चाहता हूं।

कभी ना शिक़ायत करेंगे हम भी,
वफा का यकीं दिलाना चाहता हूं।

ना मिलेगा कोई हम सा जमाने में,
शमां ए चाहत जलाना चाहता हूं।।

'अनजाना' समझे न कोई यहां पे,
ये दिल चीर के दिखाना चाहता हूं।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

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