एक कलमकार के रूप में वर्ष २०२० का अनुभव
कलि काल वर्ष सन् २० रहा,
जग त्राहि त्राहि अति क्लेश सहा,
कोरोना कहर महामारी,
संहार वर्ष बन खड़ा रहा।
मातम दहशत जन मन छाया,
लाखों ने अपनों को खोया,
भयभीत जगत लावारिस पथ,
दो गज दूरी रख पड़ा रहा।
सब रिश्ते नाते जग छूटे,
उद्योग जगत सब बन्द पड़े,
गमनागम ठप जग थल नभ जल,
शिक्षण संस्थानें बन्द रहे।
उद्योग मास्क जग श्रेष्ठ रहा,
बस सनेटराइज स्वच्छ रहा,
लिक्विड साबुन जग माँग प्रबल,
परिणय सब उत्सव बन्द पड़ा।
चहुँ मची त्रासदी कोरोना,
मजदूर वतन था बस रोना,
सब भत्ते बंद शासन कर्मी,
बारिस तूफ़ान जग त्रस्त रहा।
डिजीटल जगत का भाग्य खुला,
स्मार्ट मोबाइल अति भाव चढ़ा,
बना संसाधन ऑनलाइन,
व्यापार जगत अभ्यस्त रहा।
पठन पाठन और मूल्यांकन,
सोशल मीडिया स्व संचालन,
डाउनलोड विविध एप यहाँ,
नैपुण्य डिजीटल वर्ष रहा।
लेखन भाषण जन संभाषण,
या राजनीतिक हो निर्वाचन,
सब लिप्त डिजीटल माध्यम,
लॉक डाउन जग विकल्प रहा।
साहित्य संस्था अनंत खुले,
प्रमाण पत्रों के बाढ़ चले,
मठाधीश बने साहित्य पटल,
लाइव सम्मेलन वर्ष रहा।
बहुधा नेता कवि अभिनेता,
तज प्राण ग्रसित हो कोरोना,
निर्भीत मूढ कुछ आन्दोलक,
अवसाद सना पथ पड़ा रहा।
निकुंज पीड़ित भी दुर्घटना,
कोरोना भय त्रासद उतना,
शिक्षण लेखन सब चले क्रमिक,
निशिवासर घर नित पड़ा रहा।
संताप दंश जग कोरोना,
वर्ष इक्कीस ऐसा हो ना,
जग सर्वनाश पथ मानवता,
रह स्वच्छ दूर रख दो गज का।
बस कलमकार कवि मन चिन्ता,
कब मिटे विपद कोरोना का,
मानव हितकारी पाल नियम,
सियराम भक्ति कवि आश रहा।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली