हमारी राय शुमारी अगर ज़रूरी है
हमे भी मुल्क की रखनी खबर ज़रूरी है
हरा भरा हो अदब का चमन हमारा तो
हमारे घर में सुख़न का शजर ज़रूरी है
तबीब करता है चारा हमारे ज़ख्मों का
दवा के साथ दुआ भी मगर जरूरी है
कि नेक काम में आती हैं अड़चनें अक्सर,
बुलन्द हौसला रखना मगर ज़रूरी है।
मिरे नसीब में शब है अगर अँधेरी तो,
कभी तो रंज-ओ-अलम की सहर ज़रूरी है।
मैं इक जगह पे ही रुक जाऊं ग़ैर मुमकिन है,
किसी भी सम्त हो लेकिन सफ़र ज़रूरी है।
उसे ये कैसे बताऊँ सुकून-ए दिल के लिए,
है ख़ैरियत से वो ऐसी ख़बर ज़रूरी है।
दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्य प्रदेश)