विश्वास - कविता - अवनीत कौर

विश्वास का बीज मुश्किल है बोना
ज़िंदगी की धरा में पिरोना
मिल जाए विश्वास एक बार
फिर उस विश्वास को न खोना।

टूटे विश्वास, जुड़े न बार बार
लगे जब दगा का प्रहार
हर वार पर दर्द बेशुमार
विश्वास रण पर लगे,
अविश्वास की मार
चोट लगे, अथाह, पार।

विश्वास की आस पर
टिकी दुनिया की नीव है
विश्वास के सफ़र में
हर मोड़ पर है यकीन
विश्वास टूटे जल्द,
धागा बहुत महीन।

अवनीत कौर "दीपाली सोढ़ी" - गुवाहाटी (असम)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos