जब जब युवा नए अरमानों की और बढ़ते हैं।
इतिहास गवाह है कागज के पन्ने छोटे पड़ते है।।
मंजिल कदम छूती हैं हँस हँस कर उस परिंदे के।
जिसकी उड़ान में आसमान तक कम पड़ते हैं।।।
बहानों की कमी नहीं हैं जमाने के किरदारों में।
कर्मकार की इबादत इन तारीफों में रमती हैं।।
फाँसी के फंदे को लेता है चूम अपने होठों से।
उस बलिदान की गाथा में कलम सिसकती हैं।।।
जाग उठता है सोया अभिमान महामानव का।
जिसकी राह में भोर हर सुबह बिलखती हैं।।
भारत माँ के आँचल में सोने वाले वीरसपूतों की।
अमर कहानी कलमकार की कलम लिखती हैं।।।
अकेली छोड़ जाता है सैयां में अपनी हसीना को।
जब रणभूमि में दुश्मन की ललकार मिलती है।।
सुहागन के सुहाग की बलि हर रोज लगाता है।
तब जाकर चेहरा समाज में शहीदी सजती हैं।।।
आँसू नहीं बहाता वो वतन जीगर में रखता हैं।
तुम सोते हो महलों में वो बॉर्डर में पहरा देता हैं।।
भूल जाता है दर्द को बदन में तिरंगा रहता हैं।
मातम नहीं उसे मौत को हसके गले लगाता है।।।
आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)