मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग ८) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(८)
उदित हुए दिनमान, उषा खिल के मुस्काई।
कोयल छेड़ी तान, क्षितिज में लाली छाई।।
ममता कहे जोहार! मिहिर को शीश झुकाकर।
अब कहो सविस्तार, कथा जगपालक दिनकर!

बोले प्रभु आदित्य, किए बिन पल भर देरी।
बजा रहे थे नित्य, निवासी गण रणभेरी।
धाल क्षेत्र में पाँव, जमाए ब्रिटिश प्रशासक।
घूम-घूम कर गाँव, लगे कर लेने नाहक।

कर देना इनकार, अगर शासक गण करते।
गद्दी से अधिकार, ब्रिटिश अधिकारी हरते।
कठपुतलियाँ समान, बनाते राज प्रशासक।
पूरे कर अरमान, ब्रिटिश कर लेते भरसक।।

निष्कासित सम्राट, दुखी रहते थे भारी।
प्रजा जोहते बाट, बने राजा अधिकारी। 
भड़क उठे तत्काल, प्रजा-राजा गण सारे।
था मच गया बवाल, लगी जलने गलियारें।।

आगे बोलो मिहिर! कथा गढ़ जलने वाली।
मरे कई शतवीर, रात घिर आई काली?
धालभूम पर शीश, सगर्वित आज झुकाओ।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos