तेरे शहर में हूँ - कविता - अंकुर सिंह

जब-जब तुम्हारे शहर में होता हूँ,
तुम्हारी याद आ ही जाती है।
भले चंद घंटे रही मुलाक़ात हमारी,
फिर भी तुम्हारी याद आ जाती है।।

पता हैं मुझे, क़सूर ना मेरा,
दिल कहता है क़सूर ना तेरा।।
समय ने हालात ऐसे किए,
कि ना हो पाया मिलना मेरा-तेरा।।

जब-जब तेरे शहर में होता हूँ,
मिलने का जज़्बात जग ही जाता है।
सोचता हूँ कॉल कर तुम्हे बता दूँ ,
लेकिन फिर ये हाथ रुक ही जाता है।।

चाय के टेबल पर हमारा मिलना,
निगाहों से ही बहुत कुछ कहना।
और उन्हीं दरमियान,
भविष्य के योजनाओं का बुनना।।

जब भी तेरे शहर को देखता हूँ,
तुझे पाने का अहसास भरता हूँ।
भले ही ना हो पाया मिलना हमारा,
पर तस्वीर तुम्हारी छुपकर देखता हूँ।।

आज तेरे ही शहर में हूँ,
एक मुलाक़ात की चाह है मेरी।
माना आसान नहीं, पर नामुमकिन नहीं।
की ना हो एक दीदार मुझे तेरी।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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