अँखियों के झरोखों से - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

अलसाई आँखों की
खुमारी से बाहर आइए,
बिस्तर छोड़़िए
बाहर निकलिए,
सूर्य किरणों का रसपान कीजिए,
प्रकृति से भी
आँखें चार कीजिए।
उनके बारे में भी कुछ
विचार कीजिये,
लाचार, बीमार का भी
कुछ ख़्याल कीजिए।
अँखियों के झरोखों से ही सही
झाँककर देखिए तो सही
कुछ करिए न करिए
अहसास तो कीजिए,
झरोखों से भी यदि
कुछ अहसास जाग जाय,
तो बाहर निकल 
कुछ कर भी लीजिए।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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