मिथलेश वर्मा - बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)
नदियाँ - कविता - मिथलेश वर्मा
गुरुवार, दिसंबर 31, 2020
शांत भी होती है,
कलकल भी।
नदियाँ प्रवाहित है,
अचल भी।।
जीवन सहारा,
है अविरल धारा।
पर्वतों ने जिनको,
धरा पर उतारा।।
पहाड़ों से झरके,
पठारों मे चलके।
छलकी है झिले,
पोखर भी छलके।।
धरा मुस्कुरायी,
बहारें भी दमके।
हरियाली है लायी,
पृथ्वी पर जीवन के।।
सतह पर जल की,
लहरो पर स्वर्ण सी।
चमक है बिखेरती,
सुर्य के किरण की।।
नदियाँ देती खुशियाँ,
है देती ये जीवन।
बिना नदियों के,
क्या संभव है? जीवन।।
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