कितना अच्छा होता - गीत - राहुल सिंह "शाहावादी"

कितना अच्छा होता यदि तुम, पास मेरे आ जाते।
बातों ही बातों में दोनो, सपनों मेंं खो जाते।।
कितना अच्छा होता......।।

मेरे प्रियतम वह छोटा सा, मेरा घर भी होता।
हम दोंनो के मधुर मिलन से, गीत मधुर बन जाते।।
जुल्फों की उन सघन छाँव मेंं, मेरा मन थिर जाता।
होता ना अलगाव कभी फिर, यूं ऐसे सन जाते।।
कितना अच्छा होता......।।

मुर्झाऐ इस तन-मन में फिर, पुनः पुष्प खिल जाते।
कितना अच्छा होता फिर से, स्वर्णिम दिन आ जाते।।
जीवन के आधे मन्ज़िल की, रस्ता तय कर लेता।
घट-घट के सब रस चख लेता, साथ-साथ फिर जाते।।
कितना अच्छा होता......।।

साथ साथ कसमें खाने में, कभी झिझक नहि लाते।
तेरे मिलन के राज अधूरे, फिर ना ही यूं रह जाते।।
हर चाहत तुझको मैं देता, कभी न मन दुःख आता।
कितना अच्छा होता प्यारे, फिर से तुम मिल जाते।।
कितना अच्छा होता......।।

राहुल सिंह "शाहावादी" - जनपद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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