सूखी रोटी ओढ़ना बिछौना
सर्दी गर्मी साथ है रहना
प्राणी जन के उदर भरते
सत्ता के गलियारों में हम
कठपुतली बन गए खिलौना।
सूखी रोटी ओढ़ना बिछौना
सींच-सींच कर पौधा नन्हा
धरती की श्रृंगार बढ़ाए
हरी-भरी मखमली सुनहरी
चेहरे की मुस्कान बढ़ाए।
जब सुख की है बारी आई
तब मिले ना कोई उठौना
युग युग से हम बैठे ठल्ला
कोई मिले ना ऐसा बन्ना
सूखी रोटी ओढ़ना बिछौना
अब काला-पानी साथ है रहना।
सूखी रोटी...
विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)