पतझड़ - कविता - मास्टर भूताराम जाखल

पत्ते पीले पड़ना पतझड़ की है निशानी,
ज़िंदगी-जंग में भी कभी काया दे निशानी,
नयेपन नवाकार लेता हैं प्राय: तत्पश्चात,
जान ले खूबी को उसी ने ज़िंदगी पहचानी।।

नर निराश मत हो कभी तू इस पवन में,
पतझड़ पश्चात पनपते प्रसून  उपवन में।
सीख ले तू भी पतझड़ के मौसम से जरा,
जो सीख दे निराश होने की तुझे जीवन में।।

जो संघर्ष में बाजी जीत ले वे रह जाते हैं,
बाकी पतझड़ के पत्तों की भांति ढह जाते हैं,
सीमा में रहना सिखाता पतझड़ का मौसम,
पीले पत्ते पेड़ों के यह सब कह जाते हैं।।

पतझड़ सभी के जीवन में आता है,
कोई अपेक्षा करे, कोई पहचान पाता है,
कहें लेखनी से तुम्हें कलमकार भूताराम,
जानने वाला ही आगे निकल जाता हैं।।

मास्टर भूताराम जाखल - सांचोर, जालोर (राजस्थान)

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