जीत की एक आस - कविता - ज़हीर अली सिद्दीक़ी

भूख की तासीर से चाहत बदलनी चाहिए,
चाहतों का सिलसिला सपनों में आना चाहिए।
नींद से उठकर महज़ प्रयास करना चाहिए,
गिर गया तो क्या हुआ हुंकार भरना चाहिए।।

हर जीत से पहले महज़ एक हार होनी चाहिए,
उस हार पर संघर्ष का हाहाकार होना चाहिए।
संघर्ष की ज्वाला में तपकर निखरना चाहिए,
कोल से डायमंड में तब्दील होना चाहिए।।

जीत दिल में यदि जगे विश्वास होना चाहिए,
विश्वास में उस जीत की एक आस होनी चाहिए।
जीत में बंधन नही व्यवहार होना चाहिए,
जीत से हर हार का विध्वंस होना चाहिए।।

आरोप-प्रत्यारोप का परित्याग होना चाहिए,
जीत में खोने के डर का नाश होना चाहिए।
निराशा को नाश कर आस भरनी चाहिए,
दीर्घकालिक सफलता का पैग़ाम देना चाहिए।।

डूबने से बेहतर तैराक बनना चाहिए,
डूबकर भी पार  का पैग़ाम देना चाहिए।
चोटी से पहले खायी का सौगात देना चाहिए,
खायी को लांघने का विश्वास होना चाहिए।।

ज़हीर अली सिद्दीक़ी - सिद्धार्थनगर (उत्तर प्रदेश)

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