बदहाली की एक तस्वीर जब नज़र आई ,
तन के सब रोम-रोम खड़े हो गए ।
जो काफी समय पूर्व ही भर चुके थे ,
वो दिल के घाव फिर हरे हो गए ।
आज उन हालातों को जब मनभर देखा ,
इस जीवन के संघर्ष में बीत जो गए ।
बेसहारा होकर भी हम किस तरह ,
गर्त्त से निकलकर बाहर हो गए ।
हर तरफ हार की लहरे उठती थी ,
अथाह सागर तैरकर किनारे आ गए ।
हार में भी जीत की मिसाल बनकर ,
आज हम कई दिलों पर छा गए ।
कितना कष्ट भरा वह सफर था ,
लोग दुखती नब्ज़ छोड़ दूर हो गए ।
कैसे ग़म-भरे दिन बीता करते थे ,
वो जीने की राहों में दस्तूर हो गए ।
कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)