दिल के घाव हरे हो गए - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

बदहाली की एक तस्वीर जब नज़र आई ,
तन के सब  रोम-रोम  खड़े हो गए ।
जो काफी समय पूर्व ही भर चुके थे ,
वो दिल  के  घाव  फिर  हरे हो गए ।

आज उन हालातों को जब मनभर देखा ,
इस जीवन  के संघर्ष  में बीत जो गए ।
बेसहारा  होकर  भी  हम किस तरह ,
गर्त्त  से  निकलकर  बाहर हो गए ।

हर  तरफ  हार  की लहरे उठती थी ,
अथाह सागर  तैरकर किनारे आ गए ।
हार में भी जीत की  मिसाल बनकर ,
आज  हम  कई  दिलों  पर छा  गए ।

कितना  कष्ट भरा  वह  सफर था ,
लोग दुखती नब्ज़  छोड़ दूर हो गए ।
कैसे ग़म-भरे  दिन  बीता करते थे ,
वो जीने की  राहों में  दस्तूर हो गए ।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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