मिहिर! अथ कथा सुनाओ (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(२)
पट खोलो जगपाल! समय ने है ललकारा।
लाघ क्षेत्र किस काल, जैन मुनियों ने वारा?
पूज्य श्री पार्श्वनाथ, पधारे कब शुचि गिरि पर?
प्राप्त किए निर्वाण, यहाँ कब कितने मुनिवर?


महा ज्ञान कैवल्य, पूज्य महावीर पाए।
प्रेम अहिंसा सत्य, पंथ जग को दिखलाए।
वनवासी नादान, हुए विस्मित अतिकारी।
रहा मान-अभिमान, जैन मुनियों पर जारी।।


किंतु समय के संग, भावना मन की बदली।
रँगे अहिंसा रंग, बजी अनुरागी डफली।।
पढ़े प्रेम अध्याय, कई वनवासी निसदिन।
सत्य अहिंसा न्याय, प्रेम अपनाए पलछिन।।


वन प्रांत कथा सार, नाथ! जग को बतलाओ।
जैन धर्म जयकार, हमें करना सिखलाओ।
झारखण्ड विस्तार, हुआ कैसे बतलाओ।।
ममता करे गुहार, मिहिर! अथ कथा सुनाओ।।


डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)


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