करो शमन शीतार्त जन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

सिहरन  ठिठुरन सर्द  तनु, बाल जरा युववृन्द।
रविदर्शन  ढँक कोहरा, कहाँ  खिले अरविन्द।।१।।

पड़ी   कड़ाके  ठंड  अब, पहन  ऊन  गणवेश।
हाड़  रार   कर   ठंड  अब, शीताकुल  उपवेश।।२।। 

लावारिश  बिन गेह के, सड़कछाप बिन  वस्त्र। 
ठिठुर गात्र कवलित मरण, बिन घायल ही शस्त्र।।३।।

निर्दयता  है  चरम पर, सात  दशक  जनतंत्र।
ठिठुर रही  आधी  प्रजा, गज़ब  तंत्र  का मंत्र।।४।। 

है    सुषुप्त    संवेदना,  सुख  सत्ता अय्यास।
मानवता  कम्पित  शरद, दानवता   उपहास।।५।।

आहत   गृह   भूख  वसन,  दीन   हीन    दुर्भाव।
गर्मी     सर्दी     वारिशें, यायावर     क्या   घाव।।६

निशि निकुंज तम कोहरा, मचा  शीत   कोहराम। 
पशु  पक्षी  कम्पित मनुज, सुबह  बना  है  शाम।।७।।

शीतकाल कलिकाल बन, चहुँदिशि है तिमिरान्ध। 
थिथुरन शिथलित गात जग, पद नेता पा अन्ध।।८।।  

शीत  प्रीत  नवगीत बन, कुसुमित कलसी भास।
ऊष्म  शीत अरु वर्षिणी, जीवन  रीति सुहास।।९।।

कोमल  तन कंबल  वदन, ऊष्मित मन उल्लास। 
रवि ओझल जग शान्ति हो, प्रीत मिलन रनिवास।।१०।।

लिख  दोहे शीताकुलित, आवाहन सरकार।
करो शमन शीतार्त  जन, कुछ तो बनो उदार।।११।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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