रेल यात्री - कविता - प्रेम राम मेघवाल

रेल में सफर करने वाले ऐ यात्री
बेशक सफर का तू मजा ले।

पर ना कर तू तंग रेल कर्मचारी को 
नहीं ही तू उन्हें सजा दे।

तू दीवाली मनाए घरों में पटाखों के शोर शराबो में,
ये सिग्नल की बतियो में अपनी दीवाली ढूंढ़ता है।

तू होली मनाए शौक से चंग भी बजाता है,
पर रेल कर्मचारी यात्रियों की गालियां खाता है।

रेल कर्मचारी भी एक फौजी है,
मन से दुखी पर दिल से मनमौजी है। 

ऐ यात्री तूने रेल में कितनी हसीन यात्राएं की,
पहियों की खटखट की धुन में सपनो को तूने बुना
पर रेल संपति को कभी ना अपना माना। 

ऐ यात्री भारत की अक्षुण सभ्यता को यूं बर्बाद न कर
यूं भारत मां के आंचल को बदनाम ना कर।

रेल निभाएगी साथ तेरी हजारों पीढीयों तक
रेल को अपनी निजी संपति समझ
इस यू बर्बाद ना कर।

रेल में सफर करने वाले ऐ यात्री,
बेशक सफर का तू मजा ले
पर ना कर तंग रेल कर्मचारी को 
ना ही तू उन्हें सजा दे। 

प्रेम राम मेघवाल - जोधपुर (राजस्थान)

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