ये कैसी आज आबोहवा चली।
जिंदगी को ले चली उस गली।।
किनारा जहाँ मिलता नही।
दरिया जहाँ टहलता नही।।
फूल भी जहां खिलता नही।
इंसान में अब इंसानियत नही।।
तेरे आने की आहट आती नही।
खुशियाँ कोई बुदबुदाती नही।।
समर्पण भाव कहीं खो गया।
भाई चारा रिश्ता सब रो गया।।
बेटी भी घर मे ही सुरक्षित नही।
पैसों की भूख भी मिटती नही।।
ये कैसे आबोहवा बह रही पास।
न रहा आपसी रिश्तों में विश्वास।।
अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी" - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)