दिलकश - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

तेरा चेहरा कितना दिलकश लगता है ,
तेरे आगे यह चाँद भी धुंधला लगता है ।
तिरछे नयनों से तीर जब चलते हैं ,
निशाना  मेरे  दिल  पर  लगता है ।
दिल में आग इस कदर सुलगती है ,
जिसे बुझाने में एक ज़माना लगता है ।
मेरा फूल-सा दिल छलनी होता है ,
जिसे संभलने में एक अरसा लगता है ।
तेरे घुंघराले बालों में नैन फंस गये हैं ,
तेरा यह फंसाना बहुत सयाना लगता है ।
तेरे चेहरे पर काला निशां दिखता है ,
गालों पर काला तिल पहाड़-सा लगता है ।
मैं गुलाब ज्यूँ कांटों में अटक गया हूँ ,
तेरा मुस्कराना भी खिलता फूल लगता है ।
मैं तेरी हर अदा का कायल हो गया हूँ ,
तेरा कोमल हर अंग दिलकश लगता है ।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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