माँ का दुलार - कविता - रमाकांत सोनी

माँ के चरणों में स्वर्ग बसा, 
उस स्वर्ग का सुख तुम ले ना सके,
जिस सुख की खातिर देव पूजे,
वो सुख तुम माँ को दे न सके।

बचपन से माँ की नजरों ने, 
तुम्हें बुरी नजर से बचा लिया,
भली प्रकार पाला पोसा, 
सूशिक्षा स्नेह संस्कार दिया।

अब जाकर तुम संपन्न हुए, 
पर माँ को क्यों ठुकराया है, 
क्या कुंठा तुम्हारे मन में है, 
यह चेहरा क्यों मुरझाया है।

तुम माँ से झगड़ा करते हो,
उसका हृदय भी रोता है, 
वो भूखी प्यासी सो जाए, 
क्या ऐसा भी फिर होता है।

माँ के बक्से में क्या रखा, 
तुम अपने मन को टटोलो तो,
उसके आशीष में जीवन है, 
तुम प्रेमपूर्वक बोलो तो।

वरना अस्तित्व तुम खो दोगे, 
अपकीर्ति तुम्हारी होगी जग में,
तुमको कोई क्या सुख देगा, 
चेहरा देखो जा दर्पण में ।

तुम माँ की सेवा में लग कर,
अपना जीवन साकार करो, 
खूब फूलो फलो यश पाओ, 
धर्मपूर्वक व्यापार करो।

माँ की ममता की कद्र करो, 
पूरा आदर सत्कार करो,
राजदुलारे बनकर माँ के,
सेवा से जीवन साकार करो।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos