कशिश महताब जैसी - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"

कशिश तेरी महताब जैसी, 
महताब में नज़र तू आने लगी।

इश्क और मुश्क तुझसे दीवाना तेरा,
दिल की गली प्यार की इक कली लगाने लगी।

संग तू है तो और कोई नहीं मेरी हमराज़-ए-तमन्ना,
तेरे होने से वीरान दिल में रोशनाई आने लगी।

लाज़मी है चाँद का गुमाँ टूटना,
आखिर मेरी चाँद के आगे उसकी चमक फीकी पड़ने लगी।

जब से दो जिस्मों में एक जान बसने लगी,
प्यार की दुनिया आबाद होने लगी।

अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos