ख्वाहिशें - ग़ज़ल - डॉ. यासमीन मूमल "यास्मीं"

ख़्वाहिशें अपने हाथ मलती हैं।
कुछ तमन्नाएं ख़ुद को छलती हैं।।

रातरानी से जो निकलती हैं।
खुशबुएँ रात भर टहलती हैं।।

नेकियां और बदी की परछाई।
हर क़दम साथ साथ चलती हैं।।

वक़्त के साथ नज़रें अपनों की।
वक़्त को देखकर बदलती हैं।।।

मैने देखा  है  शिद्दते  ग़म  से।
हसरतें  बारहा  पिघलती  हैं।।

आज जिस सिम्त भी नज़र डालो।
नफ़रतों की  हवाएं चलती हैं।।

जिनकी नस्लों में हो लहू गन्दा।
राहे हक़ से वही फिसलती हैं।।

खिलता जाता है  चेहर-ए-मादर।
जैसे जैसे बलाएं टलती हैं।।

ये हक़ीक़त है या शबे  फ़ुरक़त।
आरज़ूएं तमाम जलती हैं।।

"यास्मीं" है अगन कोई दिल में।
मेरी सांसे जो आज जलती हैं।।

डॉ. यासमीन मूमल "यास्मीं" - मेरठ (उत्तर प्रदेश)

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