जलता जाए दीप हमारा - कविता - अनिल मिश्र प्रहरी

मिट्टी के  दीपों  में   भरकर 
तेल  - तरल    और   बाती, 
तिमिर-तोम को दूर  भगाने
को    लौ    हो     लहराती।

मिट जाए भू  का   अँधियारा
जलता   जाए   दीप   हमारा। 

हो  आँधी, तूफान   मगर   यह
दीप      न      बुझने       पाये, 
दीपक की लघु जल-जल बाती
युग   -  युग    साथ     निभाये।

धरती पर  बिखरे  उजियारा
जलता  जाए  दीप   हमारा। 

खुशियों  के  ये  दीप  जलें
हों  पूर्ण   सकल   अरमान, 
घटे विषमता, उर में ममता 
निर्धन       हो     धनवान।

मिटे व्यथा, जर, क्रंदन सारा
जलता   जाए दीप   हमारा। 

शान्ति, सफलता की फुलझड़ियाँ
घर  -   घर       करें        प्रकाश, 
न्याय, धर्म   की   ज्योति   बिखेरे
निर्बल          में            विश्वास। 

चमके  सबका  भाग्य -  सितारा
जलता    जाए   दीप     हमारा। 

अनिल मिश्र प्रहरी - पटना (बिहार)

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