दम निकल रहा - कविता - बिट्टू

गर होती मुलाकात
सपनों में भी उनसे
फिर भी पहले जैसी 
आती वो देर हमसे।

मेरी जिंदगी मानो 
यूँ कट रही आज कल 
क़त्ल कोई कर जाये 
तो इन्ज़ाम तुम्हारे दम तक।

किसी का ऑफिस तो 
किसी का कोई और काम
मेरा तो नसीब ऐसा जो
बस तुमसे ही रहता बदनाम।

एक बोतल छोड़ी थी 
मैंने उसके होंटो से छुई
दम निकल रहा मेरा
लाकर देते कोई।

बिट्टू - नई दिल्ली

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