कोई हैं जो रूठा था,
मनाने को दिल करता है।
कोई हैं जो गीत था,
गुनगुनाने को दिल करता हैं।
कोई है जो दोस्त से थोड़ा ज्यादा था,
दीवाना कहने को दिल करता है।
कोई है जो आँखों से समझता था,
पढ़ाकू कहने को दिल करता हैं।
कोई है जो पल पल छिनता था,
लड़ाकू कहने को दिल करता हैं।
कोई है जो हर बार रो देता था,
सच्चा दिल कहने को दिल करता है।
कोई हैं जो बड़ा मासूम था,
बच्चा दिल कहने को दिल करता हैं।
कोई हैं जो जीता था जी खोलकर,
जिंदगी कहने को दिल करता है।
कोई है जो प्यार के लिए भी लडता था,
प्रेमी कहने को दिल करता है।
कोई पल है जो बाहों में उसके था,
सुकून कहने को दिल करता हैं।
कोई राख सा था जो छन्कर भी बुझ ना सका,
"खाकी" कहने को दिल करता है।।
सन्तोष ताकर "खाखी" - जयपुर (राजस्थान)