दीप तले अंधेरा ना रहें - कविता - विकाश बैनीवाल

दीप तले अंधेरा ना रहे,
सामूहिक सकल दीप जलाओ,
यति हररुह त्याग,
स्तुति संग माँ लक्ष्मी को नैवेद्य चढ़ाओ। 
तामसिक प्रवृति ना रहे,
प्रत्येक को एकता पाठ पढ़ाओ, 
दीप तले अंधेरा ना रहे
सामूहिक सकल दीप जलाओ। 

रूठे हुओं को उर ला,
निज मान फिर से गले लगाओ, 
स्वजन,जन-जन के संग,
निष्पाप भाव दिवाली मनाओ। 
दम्भ विद्यमान है लोक में,
तो नेकी की अलख जगाओ, 
दीप तले अंधेरा ना रहे
सामूहिक सकल दीप जलाओ। 

मन की ईर्ष्या पावक दाह कर,
शुद्ध चेतन पुनीत बनाओ, 
सब जात-पांत,
धर्म को इंसानियत के नाते अपनाओ। 
अखंड-अमिट ज्योति बिच,
हृदय में सबके समाओ, 
दीप तले अंधेरा ना रहे
सामूहिक सकल दीप जलाओ। 

गरीब का घर-आँगन रोशन कर,
पुण्य फल कमाओ,
दीप किरण प्रखर देख,
निंद्रित स्वत:अंतर्मन जगाओ। 
हर प्राणी के प्रयोजन पूर्ण हो,
अंधेरा दूर भगाओ, 
दीप तले अंधेरा ना रहे
सामूहिक सकल दीप जलाओ।

विकाश बैनीवाल - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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