मिट्टी के घड़े - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

जान लो तुम ये, वही लोग बड़े होते हैं
साथ अपनों के जो मुश्किल में खड़े होते हैं

पेश आते हैं बुजुर्गों से जो इज़्ज़त के साथ
हो कभी भूल तो पाँवों में पड़े होते हैं

बिजलियाँ खूब छले, सर्द करें पानी को
किंतु  माकूल  तो मिट्टी  के  घड़े होते हैं

हार की फ़िक्र कँहा उनको उसूलों के लिए
जंग जो  डट के  बुराई से लड़े होते हैं

नर्म फूलों की तरह आत्मा जिनकी है पवित्र
वो ही तो साथ मुसीबत में खड़े होते हैं

ज़हन में दर्द का तूफ़ान भले हो "अंचल"
मुस्कुराते  हुए बेख़ौफ़ अड़े  होते हैं ।।।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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