सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)
भ्रष्टाचार - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
बुधवार, नवंबर 25, 2020
अविश्वसनीय सा लगता है
पर भ्रष्टाचार का दीमक
हर ओर पहुँच ही जाता है,
अब क्या क्या, कहाँ कहाँ बताऊँ
अब तो कहते हुए भी शर्म लगता है।
अब आप ही बताइये
इसे क्या कहेंगे?
अब तो लाशों के साथ भी
भ्रष्टाचार होता है।
कौन है जो दावा कर सके कि
यहाँ भ्रष्टाचार नहीं होता है।
हर जगह भ्रष्टाचार दो कदम आगे है
कानून बाद में आता है
भ्रष्टाचार पहले ही
डेरा जमाये होता है।
या यूँ कहें कि आजकल
भ्रष्टाचार के बिना सबकुछ
अधूरा अधूरा सा होता है।
भ्रष्टाचारियों को भ्रष्टाचार के बिना
मोक्ष कहाँ मिलता है।
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