मै शुन्य ही सही
पर एक अदब है मुझमें।
ज़िंदगी जीने की शबक है मुझमें।
हारना तो मैने सीखा ए बचपन से
पर हार कर, जीत की कशक है मुझमें।
ना झूठ, ना फरेब ना मन मैला द्वेष,
सच्चाई ए ज़िंदगी, तेरी झलक है मुझमें।
मै शून्य ही सही
पर एक अदब है मुझमें।
मंजिल मेरे तब भी दूर थे
हालातो से मजबूर थे,
गिर कर चलना, चल कर गिरना,
पर दौड़ने कि फिदरत है मुझमें।
मै शून्य ही सही..
पर एक अदब है मुझमें।
पहाड़ों से हम दूर खड़े है
पर यकीनन कई दफा उससे लड़े है,
एक दिन जीत जाएंगे यह सोच
कई दफा खुद से भिड़े है।
हाँ हारने का शौक, और जितने कि कशक है मुझमें।
मै शून्य ही सही
पर एक अदब है मुझमें।
तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)