बदनामी से पहले - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"

रूठ तो हम भी ले
पर मनाने यहाँ कौन आता हैं।

दर्द में करहा तो हम भी ले
पर बाटने यहाँ कौन आता है।

जिंदगी में महक तो हम भी ले,
पर फूलों सा भंवरा अब कहाँ आता हैं।

बादलों सा बरस तो हम भी ले,
पर ज़मीर का टुकड़ा कहाँ मिल पाता है।

नशा तो कर हम भी ले,
पर संभलने को कंधा कहाँ मिल पाता हैं।

जहर उगल तो हम भी ले,
पर हमसे ढसवा सके वो बन्धा कहा मिल पाता है।

यह ज़हर पी तो हम भी ले,
पर बदनामी से पहले नाम कहाँ मिल पाता है।

सन्तोष ताकर "खाखी" - जयपुर (राजस्थान)

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos