सन्तोष ताकर "खाखी" - जयपुर (राजस्थान)
बदनामी से पहले - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"
बुधवार, नवंबर 18, 2020
रूठ तो हम भी ले
पर मनाने यहाँ कौन आता हैं।
दर्द में करहा तो हम भी ले
पर बाटने यहाँ कौन आता है।
जिंदगी में महक तो हम भी ले,
पर फूलों सा भंवरा अब कहाँ आता हैं।
बादलों सा बरस तो हम भी ले,
पर ज़मीर का टुकड़ा कहाँ मिल पाता है।
नशा तो कर हम भी ले,
पर संभलने को कंधा कहाँ मिल पाता हैं।
जहर उगल तो हम भी ले,
पर हमसे ढसवा सके वो बन्धा कहा मिल पाता है।
यह ज़हर पी तो हम भी ले,
पर बदनामी से पहले नाम कहाँ मिल पाता है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर