जीवन में मीत बनाते हैं सभी।
तुम भी हाथ बढ़ाओ तो सही।
कुछ और ही बयां करूँ क्या?
चाहत से भी और बड़ा क्या?
सुमन सुमुखि आगे आओ तो सही।
गैरों के घरों को उजाडो़ ना,
सीखो सिर्फ तुम उन्हें बसाना,
अब दिल से दिल मिलाओ तो सही।
अगर तुम्हें हमसे मुहब्बत है,
मैं आभारी रहूँगा प्रलय तक,
''रसीली'' बतरस पिलाओ तो सही।
रक्तिम कपोल छिपाए क्यों हैं?
चूम लेने दो प्रिये! चाहूँ चूमना,
''विकल'' लवों से लगाओ तो सही।
दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर, एटा (उत्तर प्रदेश)