अच्छा नहीं - कविता - कपिलदेव आर्य

दिल बहलाने के लिए, दिल तोड़ना अच्छा नहीं,
हथेली में पूनम का चाँद दिखाना, अच्छा नहीं.
डरती हैं कुछ नाजुक आँखें ख़्वाब देखने से,
नज़ारे झूठे दिखाकर, खिलखिलाना अच्छा नहीं!

ये तो मेरा दिल था, इतने सितम को झेल गया,
अब इस दिलजले को और जलाना अच्छा नहीं!
माना, कि दिल्लगी करने की तुम्हारी आदत है,
पर रिसते ज़ख़्मों पर नमक लगाना अच्छा नहीं!

इक सूरत के चक्कर में, घनचक्कर बन गए,
उस पर अदाओं की बिजली गिराना अच्छा नहीं!
एक बार की ठोकर से बिखर गई है उम्मीदे मेरी,
किसी को फिर से ठोकरों में लाना अच्छा नहीं!

जब हों गर्दिश में सितारे, तब ही प्यार होता है,
जाकर अब समझ सके हैं, इतना क्या कम है?
बड़ी मुश्किल से मिली है ज़िंदगी, ए दिले नादां,
अजी, इसे फिर ठोकरों में लाना, अच्छा नहीं!

कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)

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