मग़रूर से रिश्ते बनाते नहीं - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन

मुंह मोड़कर हम जाते नहीं,
इश्क गर तुम ठुकराते नहीं!

यूं किसी से दिल लगाते नहीं,
मग़रूर  से रिश्ते बनाते नहीं!

आंखों पे कब अख्तियार रहा,
ख़्वाब लेकिन तेरे आते नहीं!

वो ख़फ़ा होती है तो होने दो,
हम नहीं वो  के मनाते नहीं!

दिल उजड़ी हुई बस्ती लगे है,
तूफां से लोग डर जाते नहीं!

राह में हम अगर ठहर जाते,
ख़्वाब मेरे बिखर जाते नहीं!

मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)

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