अरुणोदय - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

उषाकाल में-
लालिमा से परिपूर्ण,
प्रखर तेज, 
रक्त-वर्ण,
अरुण!
होते विकसित अरुणाचल में।

हरे-भरे पर्वत-श्रंगों-
के मध्य,
लाल-बिंबफल सम,
दिनकर!
करते प्राण-दान, चल-अचल में।

दूर क्षितिज पर-
प्रकाश-पुंज,
नव विकसित कमल-सम,
भास्कर!
होते उदित प्रथम, नभ-तल में।

स्वर्ण-रश्मियों से,
भरते उल्लास जन-मन में,
प्रमुदित हो,
रवि!
कराते संगम भ्रमर कमल में।

चम्पई उजाला लेकर,
दिशा-ज्ञान-भान,
जन-मन रंजन,
दिनेश!
भरते स्पंदन पथिक-'विकल' में।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर, एटा (उत्तर प्रदेश)

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