मोहब्बत - कविता - कपिलदेव आर्य

मोहब्बत के बाज़ार से
लुटकर आया हूँ,
ठोकरों से घायल
फिर वही दिल लाया हूँ!

इस प्यार की तृश्नगी ने
बर्बाद कर दिया,
टुकड़ों में दिल की
धड़कनें भी लाया हूँ!

ए मेरे दिले नादान, 
अब तो संभल जा, 
फ़िर क्यों उसी दोज़ख़ में 
लौट आया है?

वो शिगूफ़े वफ़ाओं के, 
शोखियां उसकी, 
वो मदमस्त जवानी, 
भूला नहीं पाया हूँ!

इश्क़ में मुग़ालते नहीं, 
बस कोफ़्त खाई, 
इसीलिए फ़िर वही  
दिल लाया हूँ!

कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)

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