कभी वो इंसानियत का रखवाला नहीं होता!
इल्म को किरदार में जिसने ढाला नहीं होता!
तालीम से रौशन जिंदगी हो भी सकती है,
जहालत में जिंदगी का उजाला नहीं होता!
बहकता है वही अक्सर बुरी सोहबत में आके,
ज़ेहन में जिसके इल्म का प्याला नहीं होता!
सिवाय-इल्म तरक्क़ी का कोई रास्ता भी नहीं,
कि जिस्म बेचने से कोई इजाला नहीं होता!!
मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)