जय माँ की महिमा - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

जय   माँ   की महिमा अपरम्पार,
नवदुर्गे    जग   की     तारणहार।
नवमहाशक्ति      ममता   आगार,
जय    शैलपुत्री   गौरी   अवतार।

जग   शान्ति  रूप   दुर्गा आधार,
जगदम्ब   शिवानी    करुणागार।
जय    मातु   भवानी   तारणहार,
जग    पाप  दानवी   जग संहार। 

भद्र काली     काली    महाकाल,
बहु     रक्तबीज  हैं  अब  संसार।
महिषासुर      करते    बलात्कार,
जिह्वा    फैला   कर     रक्ताहार। 

बस   घृणा  झूठ  छल  भ्रष्टाचार,
मिटा    ब्रह्मचारिणी      दुराचार।
मधुकैटवनाशिनि   हृत्   विशाल,
मातंगी    मातु    महिमा  अपार। 

जै      चन्द्रघण्टा       स्नेहागार,
कुष्माण्डे !  पापों  से  जन  तार।
आहत  समाज  बहु तारक भार,
हर स्कन्धमातु जग पातक सार।  

जला   धुम्रलोचन   माँ    हूंकार,
कात्यायनी  कौशिकी   अवतार। 
दुर्गतिनाशिनी   कालरात्रि   जग,
महालक्ष्मी    सृष्टि     पालनहार। 

अब शुम्भ निशुम्भ आतंकी  बन,
तजे  मानवता    हिंसा     प्रसार।
खा अन्न  यहाँ  बन  गद्दार  वतन,
माँ   महागौरी  कर  खल  संहार। 

हे  रिद्धि   सिद्धि  संसाधक   जय,
अवलम्ब मातु    जग भक्ति  सार।
जयन्ती   मंगला कपालिनि   जय
स्वाहा     स्वधा    जननी   संसार। 

दे सन्मति   विवेक   सुख   शान्ति,
राष्ट्र प्रेम  मनुज  कर     भक्तिसार।
हरो   द्वेष    तिमिर   हिंसा   प्रपंच,
ला सिद्धि दातृ जग अस्मित बहार। 

सती  शिवा  शक्ति  कल्याणी जग,
माँ     सरस्वती  ज्ञानालोक सजग।
कर मातु शीतले! जग व्याधि मुक्त,
अरुणाभ   प्रगति  दे शान्ति  सूक्त। 

माँ कालविनाशिनि जगतारिणि जय,
जय  सिंहवाहिनी विन्ध्याचलि  जय।
हे  त्रिपुरसुन्दरि!   हर  संताप जगत,
कामाक्षि भगवति! रख कृपा  सतत। 

हरो सकल  पीड  मन कलुष  हृदय,
अन्नपूर्णे !    भरो     दीनार्त    सदय।
सम्मान   शौर्य   कीर्ति  प्रीति   वतन, 
करूँ     दुर्गे      भुवनेश्वरि     पूजन।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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