तेरी सादगी - कविता - कपिलदेव आर्य

तेरी सादगी मुझे भा गई,
ज़िंदगी जन्नत सी पा गई!
कोई सोलह सिंगार नहीं,
फिर भी तू ग़ज़ब ढा गई!

सौम्यता की तूं पराकाष्ठा,
जैसे धवल चाँदनी छा गई!
खनखन करके जब हँसती,
मेरे दिल पे बाण चला गई!

ना आँखों में काजल तेरी,
और ना होंठों पर लाली है!
बस आँखों में प्यार भरा है,
तू बिन ख़ुशबू महका गई!

मुखड़ा जैसे चाँद तुम्हारा,
आँखें बिल्कुल झील हैं!
हाय, लटें माथे पे उड़ती, 
और उसपे तूं शरमा गई!

गले में पहनी फूलपातड़ी,
और भाल पे बिंदी भा गई!
सजी साड़ी में भोली सूरत,
तुझे देख के खुमारी छा गई !

कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)

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