अभाव ही तो भाव है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

मैं जहाँ देखता हूँ अभाव,
वहाँ कलम दौड़ पड़ती है।

सूखे पत्तों का दर्द बयां करने,
मेरी कलम दौड़ पड़ती है।

राहों में चलते चलते ही,
अक्सर कलम मचल जाती है।

निराशाओं को मिटाने अक्सर,
आशा में कलम दौड़ जाती है।

एक दर्द में ही नहीं वो अब,
प्रेम का भाव भी गढ़ देती है।

अब उन दोनों को अक्स दिखाने,
मेरी कलम दौड़ पड़ती है।

शांत निगाहों में भी,
दिल की हलचल ढूंढ लेतीे है।

अभाव में भी भाव का वो 
दर्पण अब खोज लेती है।

श्रंगार से वात्सल्य तक,
यात्रा नयनों से कर लेती है।

अब जहाँ में जैसा भाव हो, 
वहां कलम दौड़ पड़ती है।

अभाव में भी भाव हो जब,
तब तर्पण खोज लेती है।

अब अक्सर मेरी कलम,
शब्द भाव खोज लेती है।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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