करके शादी जिसे घर पे लाया था मैं,
बनके जीवन की मेंरे वो साथी रही,
मेंरे सुख-दु:ख के पल की वो भागी रही,
बातों-बातों में मुझको सताती रही,
मैं था रूठा रहा वो मनाती रही,
मेंरी खातिर वो दुनियां हिलाती रही,
प्यार मुझ पर वो अपना लुटाती रही,
पर आज!.... चिर निद्रा में वो होके मगन,
खींच कर मेंरे ऊपर का सारा गगन,
वो ना जाने कहाँ को चली जा रही है,
करके सोलह श्रृंगार वो मेरे हाथ से,
आज मुझको अकेला किए जा रही है,
करके जिसकी विदायी ले आया था मैं,
आज मुझसे विदायी लिए जी रही है||
बजरंगी लाल यादव - दीदारगंज, आजमगढ़ (उ०प्र०)