दिल के आसपास रहो तुम !
मिटा दो शक की सब तहरीरें,
रिश्तों का एहसास रहो तुम !
बेवफ़ाई को कर दर-किनार,
मोहब्बतों की प्यास रहो तुम !
'आम' बनो जहां के लिए चाहे,
हमारे वास्ते ख़ास रहो तुम !
बदन तेरी पनाह में रहे मेरा,
जिस्म का लिबास रहो तुम !
मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)