शिक्षक अगर मार्गदर्शक है तो शिक्षार्थी राही है। शिक्षक सिर्फ मार्ग दिखा सकता है पर उस राह पर चलना खुद शिक्षार्थी को ही होता है। शिक्षार्थी हर राह पर जब भी उसे मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है वहाँ शिक्षक ही समस्या को सुलझाने में मदद करता है इसलिए शिक्षक को सुगमकर्ता भी कहते हैं।
आज की परिस्थिति में कोरोना काल के चलते शिक्षक भी अपना दायित्व पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभा रहे हैं, विद्यालय जा रहे हैं और अपने विभागीय कार्यों के अतिरिक्त शिक्षार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा भी प्रदान कर रहे हैं जिससे शिक्षा की धारा बनी रहे। इसमें बच्चों को भी घर बैठे ऑनलाइन शिक्षा का लाभ उठाना चाहिए। ऑनलाइन शिक्षा को प्राप्त करने में बच्चों के सामने कुछ समस्या तो आ रही है जिनसे शिक्षक भी प्रभावित हैं। सरकारी स्कूल के बच्चों के अभिभावकों पर सभी के पास स्मार्ट फोन उपलब्ध नहीं है और अगर फोन है भी तो वो उसमें इंटरनेट का रिचार्ज कराने में सक्षम नहीं हैं जिसके कारण ऑनलाइन शिक्षा समस्या का कारण बन रही है। प्राइवेट स्कूल के शिक्षक और शिक्षार्थियों के सामने यह दिक्कत नहीं आ रही, वे ऑनलाइन शिक्षा की अलख जलाने में सक्षम साबित हो रहे हैं उसका कारण है आर्थिक रूप से सक्षम अभिभावक।
अब बात करते हैं शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच आपसी संबंध कैसा होना चाहिए? दोनों के मध्य मधुर और व्यावहारिक संबंध होना चाहिए जिससे शिक्षार्थी को भयमुक्त परिवेश की अनुभूति हो और अपनी बात को स्वतंत्रतापूर्वक बिना झिझके वह शिक्षक के सामने रख सके।
आज असल में शिक्षक को शिक्षक नहीं बल्कि गुरु बनना चाहिए और शिक्षार्थी को शिक्षार्थी नहीं शिष्य बनना चाहिए क्योंकि गुरु अपने शिष्यों को सिर्फ पाठ्यक्रम (पुस्तकीय ज्ञान) ही नहीं वरन व्यावहारिक और मानवीय गुणों का ज्ञान भी कराता है। आज के शिक्षक सिर्फ पाठ्यक्रम को पूरा कराने को ही शिक्षा का नाम देते हैं जबकि सिर्फ इतना सा करने से शिक्षक का दायित्व पूरा नहीं होता। एक शिक्षक को अपने शिक्षार्थियों में व्यावहारिक, नैतिक, मानवीय, सभ्यता और संस्कृति भी कूट-कूट कर भरनी चाहिए।
आज के शिक्षार्थी भी बस उतना पढ़ते हैं जितना पढ़ने से सिर्फ उनको अच्छे अंक हासिल हो सकें यह उद्देश्य नहीं होना चाहिए।
आओ जानें शिक्षा क्या है?
शिक्षा वह है जो सिर्फ व्यावसायिक उद्देश्य के लिए ही नहीं वरन मानवता, नैतिकता, सामाजिकता, सभ्यता और संस्कृति को भी शामिल करती हो और बनाए रखती हो।
शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को ही अपनी भूमिका जिम्मेदारी के साथ निभानी चाहिए तभी शिक्षा का स्तर उन्नतशील हो पाएगा।
अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)