राम राज्य की अवधारणा - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

हिंदू संस्कृति में श्री राम द्वारा किया गया आदर्श शासन राम राज्य के नाम से प्रसिद्ध है।
वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
रामराज्य लोकतंत्र का परिमार्जित स्वरूप माना जाता है। 
राम राज्य की अवधारणा किसी धार्मिक संकीर्णता की द्योतक नहीं है, बल्कि एक जनहितकारी अवधारणा है।
इस पर गंभीर मनन व चिंतन की आवश्यकता है।
रामराज्य मे स्वाभाविक रूप से प्रकृति प्रदत्त उपहारों का उपयोग ही रामराज्य का आदर्श है।
आज का मानव जिन विसंगतियों और विडंबनाओं का सामना कर रहा है वह रामराज्य का उल्टा है।
 समाज अनेक वर्गों और वर्णों में विभाजित हो चुका है।मानव मानव के बीच विषमता शिखर पर पहुंच गई है ।एक दूसरे के प्रति घृणा से परिचालित हो रहा है यह समाज।
समूचे संसार में इन दिनों भावनात्मक एकता की कमी हो गई है।

राजा द्वारा किसी तरह का पक्षपात नही था। समदर्शी होना राजा होने का सबसे महत्वपूर्ण स्वरूप  माना जाता था।
आज जरूरत पड़ गई है फिर से रामराज्य की।
जिस राम राज्य का सारांश था,
नहि दरिद्र कोउ दुखी न दीना ।
नहि कोउ अबुध सुलच्छन हीना।

वैश्विक स्तर पर राम राज्य की स्थापना गांधीजी की चाह थी उन्होंने अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सिहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र सुख शांति व्याप्त हो गया था सारे भाइयों  के अशोक दूर हो गए थे। एवं दैहिक दैविक और भौतिक पापों से मुक्ति मिल गई थी ।कोई भी अकाल मृत्यु, रोग, पीड़ा से ग्रस्त नहीं था। सभी स्वस्थ, बुद्धिमान, साक्षर, कृतज्ञ व ज्ञानी थे।
तुलसीदासजी ने लिखा है कि

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सोइ नृप अवइ नर्क अधिकारी।

अर्थात जिस राजा के राज्य में प्रजा दुखी है अभावग्रस्त जीवन व्यतीत कर रही है तो निश्चय ही नर्क का  अधिकारी है।
बाल्मीकि रामायण एवं  रामचरितमानस में है पर्यावरण संबंधी विशेषताओं का भी उल्लेख किया गया है,
वानिकी जो सिद्धांत प्रिसिपल ऑफ सस्टेंड यील्ड प्रतिपादित किया गया वहां रामचरितमानस में पहले से मौजूद था।
राम राज्य में गाय व चारा की कमी न होने से गाय पर्याप्त दूध देती थी यही कारण था कि सभी लोग स्वस्थ और निरोग थे। रामराज्य में सभी नदियां शुद्ध, निर्मल, शीतल पेय जल से परिपूर्ण थी और न जल प्रदूषण था न वायु प्रदूषण और ना ही मृदा प्रदूषण था इसी से लोग  बीमार नहीं होते थे एवं धरती हरी भरी थी। इससे किसान संपन्न थे और राज्य समृद्धिशाली था।
अभाव व गरीबी का नामोनिशान नहीं था।
शिक्षा के केंद्र गुरुकुल, समाज से दूर प्राकृतिक वातावरण में होते थे जहां शिक्षार्थियों को स्वावलम्बन  के साथ-साथ नैतिक ज्ञान की शिक्षा और अन्य विषयों की शिक्षा युद्ध कला आदि  की शिक्षा दी जाती थी, जिससे समाज की बुराइयों का असर शिक्षार्थियों पर  नहीं पड़ता था। वह बड़े होकर ज्ञानी, विद्वान, गुणवान नीतिज्ञ और शौर्यवाह होकर वापस समाज में लौटते थे।

कुल मिलाकर हम कर सकते हैं रामराज्य का अर्थ तो यही था कि जहां किसी भी प्रकार का भेदभाव राजा द्वारा नहीं किया जाता था। वहां का वातावरण, जल, मृदा, वायु सब पूर्णतया सुरक्षित थे। कृषि, गोधन, फल, फूल पशुधन आदि से परिपूर्ण था रामराज्य।
जिसके कारण समृद्धि थी, खुशहाली थी, एवं लोग संपन्नता के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ थे और इसीलिए आपस में ईर्ष्या द्वेष कम था जलन कम थी झगड़े कम नही थे नफरतें नही थीं।

लोग बाहर से गुरुकुल में शिक्षा पाकर आते थे जिसमें नैतिक शिक्षा और स्वावलम्बन पर विशेष बल दिया जाता था जो व्यक्ति को आर्थिक व भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता था।
कुल मिलाकर एक दूसरे के प्रति प्रेम था, समर्पण था, प्यार था, सेवा भाव था एवं कृतज्ञता भी थी।
देश प्रेम था, गुरु प्रेम था, परिवार प्रेम था।
यही था रामराज।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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