तुम मानव बनना भूले हो - कविता - मनोज यादव

तुम प्रश्न करना भूले हो
तुम संवेदना को भूले हो।
तुम्हे इल्म नही इतना सा की 
तुम हुक़ूक़ मांगना भूले हो।।

तुम सच बोलना भूले हो 
तुम तरस खाना भूले हो।
तुम नरभक्षी बन गए इतना की
जीवन को याद करना भूले हो।।

तुम प्रेम करना भूले हो
तुम स्वप्न्न देखना भूले हो।
तुम रस्क रखते हो सबसे
तुम सबसे मिलना भूले हो।।

तुम हँसना ,गाना भूले हो
तुम जन को मनाना भूले हो।
तुम गलती पर गलती करते हो
फिर पछताना भूले हो।।

तुम इकरार करना भूले हो
तुम इंकार करना भूले हो।
तुम्हे सबकुछ भूलना नही था प्यारे
ये याद रखना भूले हो।।

तुम विरोध करना भूले हो
तुम लड़ना, भिड़ना भूले हो।
तुम जिन्दा कौम से आते हो
ये याद करना भूले हो।।

तुम मिलना जुलना भूले हो
तुम मरहम लगाना भूले हो।
तुम्हे पछतावा नही बातों का
तुम पछताना भूले हो।।

तुम सम्मान करना भूले हो
तुम मिष्ट स्वभाव को भूले हो।
तुम्हे अपमान भूलना था अपना
ये याद रखना भूले हो।।

तुम चिंता करना भूले हो
तुम चिंतक बनना  भूले हो।
तुम्हे उग्र नही बनना था प्यारे
ये याद रखना भूले हो।।

तुम शिष्ट रहना भूले हो 
तुम शांत रहना भूले हो।
आदर नही बचा है तुममे
तुम आदर करना भूले हो।।

तुम न्याय करना भूले हो
तुम अन्याय रोकना भूले हो।
तुम्हे चुप रहने की आदत है प्यारे
तुम न्याय मांगना भूले हो।।

तुम संयम रखना भूले हो
तुम क्रोध पालना भूले हो।
हर लूट में तेरा हिस्सा है
तुम मानव बनना भूले हो।।

मनोज यादव - गढ़वाल, श्रीनगर (उत्तराखंड)

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