तेरा अश्क़ लिखता रहा
तब जाकर जमाने को,
तेरा दर्द दिखता रहा।
मैने अपने रक्त से,
तेरी कहानी लिखा है
तब जाकर जमाने को,
तेरी परेशानी दिखा है।
मेरा दर्द मुझे,
तुझमें दिखा है
तब जाकर इसको मैने,
गोरे कागज पर लिखा है।
मैने खुद ही गोता लगाया,
तकलीफों के समन्दर में
तब जाकर लाया,
जमाने में मंजर को।
मैं अपना लहू जलाकर,
तेरा अश्क़ लिखता रहा
तब जाकर जमाने को,
तेरा दर्द दिखता रहा।
शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)