झुके रहते शीश शहादत में - कविता - सुनीता रानी राठौर

सदा झुके रहते हैं शीश उस शहादत में 
जिनकी वजह से मिली है आजादी हमें।
शत् शत् नमन उन सभी वीर सपूतों को
जो स्वतंत्रता संग्राम में नींव की ईंट बने।

नींव की ईंट चाह नहीं प्रसिद्धी की  जिन्हें
सर्वस्व समर्पित कर खो गए गुमनामी में।
चमकते कुछ स्वतंत्रता सेनानी रूपी कंगूरे,
इतिहास के रंगीन पन्नों में, स्वर्ण अक्षरों में।

कंगूरे जो नींव की ईंट पर हैं अडिग खड़े,
कंगूरे जिस पर प्रतिवर्ष माल्यार्पण करते।
राजनेता जिनके नाम पर राजनीति करते,
काश! कोई देखे नींव में कितने ईंट दबे?
        
कीचड़ में दबे जो आजादी की खातिर,
कंगूरे की मजबूती बनाये रखने खातिर।
त्याग निःस्वार्थ भाव से होकर समर्पित,
क्यों नहीं जान पाता कोई उसे आखिर?

माल्यार्पण की न हो जिसकी कामना, 
समर्पण की है जिसकी प्रबल भावना।
उनकी भावनाओं का हो रहा है दमन,
क्षुद्र राजनीति से अब हो रहा सामना।

उनके बलिदानों पर कंगूरे चमक रहे,
कंगूरे-सा स्वार्थी नेता सत्ता लपक रहे।
बाह्यआडंबर देख रोती उनकी आत्मा,
कैसे सत्ता की खातिर कंगूरे झगड़ रहे।

जो नींव की ईट बन मजबूती से खड़े,
गगनस्पर्शी आकांक्षाओं में नहीं पड़े। 
सर्वस्व बलिदान कर दिलाई आजादी,
गुमनाम इतिहास के पन्नों में दबे पड़े।

वो लाल माँ का, सिंदूर अर्धांगिनी का,
वो राखी बहन का, वो सपूत देश का।
नींव की ईंट बन, किए सर्वस्व समर्पित
कैसे कर्ज उतारे उनकी शहादत का?

शत-शत नमन स्वतंत्रता सेनानियों को।
शत शत नमन हर वीर सपूत योद्धा को।
सदा झुके रहते हैं शीश उस शहादत में
प्राण न्योछावर किये जो मातृभूमि-रक्षा में।


सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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