ग़लतफ़हमी - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

कितनी आसानी से
एक छोटी सी 
ग़लतफ़हमी का
शिकार हो जाते हैं,
तब हम खुद को सबसे ज्यादा
बुद्धिमान पाते हैं।
किसी का भी मशवरा हमें
सबसे खराब लगता है,
सामने वाले का ही
वो सबसे सगा लगता है।
भावावेश में हम सब भूल जाते हैं,
क्या अच्छा क्या बुरा
कुछ भी जान नहीं पाते हैं,
अपने ही हाथों
अपने ही खूबसूरत घोंसले को
झटके से 
नोच डालते हैं।
तब तक हम कुछ भी 
समझ नहीं पाते,
जब समझ पाते हैं तब
हाय हाय करने के सिवा 
कुछ भी नहीं कर पाते।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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