अनुभव हम ना कुछ जानें।
हमें बस उस कली का
मुस्कुराना अच्छा लगता है।।
कि जब खिड़की पे वो आए
हवा का रुख बदल जाए।
झुकाकर के यूँ नजरों का
उठाना अच्छा लगता है।।
लगाऐ आँख में काजल
और होठों पर लिपस्टिक वो।
तो उसका ये
मिजाज-ए-कातिलाना
अच्छा लगता है।।
जो लफ्जों से निकल कर
के ह्रदय में यूँ ठहर जाएं।
हमें इस लेखनी का वो
तराना अच्छा लगता है।।
ये बंदिश लॉकडाउन की
ये यू.पी. पुलिस के डंडे।
हमें बेफिक्र उसके शहर
जाना अच्छा लगता है।।
अनुभव मिश्रा - फरूखाबाद (उत्तर प्रदेश)